सोचा इसी पर स्टोरी कर दूं... सो ये नाचीज कौशांबी की गलियों में खाक छानने निकला...
गंदे मलबे की नीयत और नियति का नहीं था पता, मैं स्योर नहीं था, खबर मिलेगी या नहीं... बस बंद गली के अंधे रास्ते पर निकल पड़ा था कि कहीं, पीपली लाइव का नत्था मिल जाए.... नत्था मिला तो समझो दो दिन तो यूं ही निकल जाएंगे... असाइन्मेंट से हो जाएगी पेमेंट, और इनपुट एडिटर भी मान जाएगा.... बंदे में है दम...
कौशांबी की गलियों में मैं जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था, सूरज लापता हो चला था.... कभी-कभार जुगनू की माफिक चमकता, मलबे की गंध और खबर की सुगंध दे रही थी... अब मलबे पर यकीन हो चला था.. साला मलबे में स्टोरी नाम का माल छिपा है... यहीं मुझे अपने अजीज दोस्त का ख्याल आया... यहीं कौशांबी की गलियों में रहता है.... नाम है.... अरे नाम में क्या रखा है, दावा करते हैं टीवी के स्क्रिप्ट के मास्टर हैं
बने हैं नये नवेले (EP) EXECUTIVE PRODUCER... लेकिन बेचारे कभी लिखते नहीं..या यूं कहे की कभी लिख नहीं पाते, वजह है उनकी जानी पहचानी अनजानी अनारकली...
कैमरा कंधे पर लटका था... इंतजार कर रहा था, तभी सामने से, इस सड़क के दूसरी कोने से कोई दो दर्जन लोग दिखाई दिये... सफेद, लकदक, मानो टिनोपाल से निकले कौशांबी की गली में उतर आए हों... मन में आया कौन लोग हैं ये... पता चला ये मौलाना हैं और नमाज पढ़ कर आ रहे हैं.. तभी मेरे पीछे से एक कार बड़ी तेजी से निकली..........आगे पढ़ें....